Wednesday, November 26, 2008

अक्स से एक मुलाकात...

आइना देखा तो... दूधला सा एक अक्स नज़र आया...
पेहेचानने की कोशिश मे... लम्बा समय बिताया...

कभी सोचा ये हे...कभी सोचा वोह हे...
कभी लगा हे कोई पहचाना...कभी लगा हे कोई अनजाना...
जुगत लगायी बड़ी... पर सम्जः कुछ न आया...
आइना देखा तो... दूधला सा एक अक्स नज़र आया...

इन्तेज़ार किया शायद कुछ बोलेगा...कुछ तो अपने बारे मे बताएगा...
कुछ सुराग मिला न मुझको... अधर से मै निकल न पाया...
एक छोटी सी उलझन ने मेरा.. रक्त चाप बढाया...
आइना देखा तो... दूधला सा एक अक्स नज़र आया...

कभी घबराया मै...कभी खुद को संभलवाया॥
सुलझेगी कभी गुत्थी ...धीरज दिया खुद को ये दिलासा दिलवाया॥
अपनी ही गलती को...अपना गर्व बनवाया...
आइना देखा तो... दूधला सा एक अक्स नज़र आया...

मेरी लाचारी देख कर अक्स ही.... खुद आइने से बाहर आया...
बोला इस भीड़ भाड़ भरी दुनिया मे...खुद को ही भूल गया तू...
क्या अब समजह मे आया?
आइना देखा तो... दूधला सा एक अक्स नज़र आया...

वक़्त के पीछा जाकर... अरसा पहले फिर से खुद से मुलाकात कर के आया॥
खुद को भीड़ मे भी... अंजना, अकेला और भागता हुआ पाया...
दिखावे मे दुनिया के...खुद को ही एक अक्स बनाया...
आइना देखा तो...खुद का चेहरा मुझको अक्स मे नज़र आया...
आइना देखा तो... दूधला सा एक अक्स नज़र आया...

Time to go back home..

Finally I will be heading back to my home place after much of travelling, work and spending time away from family (Will miss the thanksgiving weekend though). Hope to spend some good time at home and yes some good food. lol :)

Its a nice feeling going back to one's own nation...missing the winters in Delhi and Vishu!!!
Going back with 2 things in mind i.e. PMP cert and much awaited trip to Kerala ... Lets see.

I deserve a break..Isn't it? :)

Sunday, November 16, 2008

क्या चाहता हे तू मन?

हर लम्हा हर छण
खुद से ये कैसी अन-बन।
अनजाने मौसम के ही जैसा
क्योँ पल मे बदलता हे ये मन.

कभी उम्मीदे जगाता
कभी तकलीफे देता।
एक अकेली कश्ती के जैसा
क्यौं होले होले बहता हे ये मन.

अँधेरे मे सहारा देता
रौशनी मे कही छुप्प जाता।
मोम की बत्ती जैसा
क्योँ जलता हे ये मन.

खुशियों मे दर्द को
दर्द मे खुशियों को
और दूरियों मे नजदीकियों को।
कैसे महसूस कर लेता हे ये मन.

कभी सी++, कभी सी#
कभी बीओ सीओ, कभी एअस्पी जावा,
नयी नयी टेक्नोलॉजी के जैसा
कैसे खुद को कॉन्फिगर करता हे ये मन.

कभी सुलझ जाना
कभी उलझ जाना
क्या कभी तुझे समज पाउँगा
क्या चाहता हे तू मन?
क्या चाहता हे तू मन?